उठो दयानंद के सिपाहियों
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19-Oct-2014Top Articles in this Category
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उठो दयानंद के सिपाहियों समय पकार रहा है,
देशदरोह का विषधर फन फैला फंकार रहा है ||
उठो विशव की सूनी आखें काजल मांग रही हैं |
उठो अनेकों दरपद सतां आचल मांग रही हैं |
मरघट को पनघट सा कर दो जग की पयास बा दो|
à¤à¤Ÿà¤• रहे जो मरसथलों में उन को राह दिखा दो |
गले लगा लो उनको जिनको जग दतकार रहा है ||१||
तम चाहो तो पतथर को à¤à¥€ मोम बना सकते हो |
तम चाहो तो खारे जल को मोम बना सकते हो |
तम चाहो तो बंजर में à¤à¥€ बाग़ लगा सकते हो |
तम चाहो तो पानी में à¤à¥€ आग लगा सकते हो |
जातिवाद जग की नस-नस में जहर उतार रहा है ||२||
याद करो कयों à¤à¥‚ल ग जो ऋषि को वचन दिया था |
शायद वायदा याद नहीं जो आप ने कà¤à¥€ किया था |
वचन दिया था ओम पताका कà¤à¥€ ना कने देंगे |
हवन कणड की अगनि घरों से कà¤à¥€ ना बने देंगे |
लहू शहीदों का गददारों को धिककार रहा है ||३||
कब तक आख बचा पाओगे आग बहत फैली है |
उजली-उजली दिखने वाली हर चादर मैली है |
लेखराम का लहू पकारे आख जरा तो खोलो |
क बार मिल कर सारे ऋषि दयानंद की जय बोलो |
वेद जञान का वयथित सूरय तमहे निहार रहा है ||४||
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